मजदूरी भुगतान अधिनियम 1936
मजदूरियों में जो मनमाने तरीके से कटौती और शोषण होता था, उनको लेकर एक समिति का गठन 1925 में किया गया। श्रमिकों के लिए मजदूरी की मात्रा के साथ-साथ इनका समय पर भुगतान, भुगतान का तरीका, मनमाने कटौती से संरक्षण के लिए इस समिति का गठन किया गया इस समिति में 1928 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, लेकिन श्रम आयोग के गठन के बाद मामला पुनर्विचार के लिए आयोग को दिया गया फिर श्रम आयोग ने 1929 में रिपोर्ट प्रस्तुत की जिससे उसके बाद 1936 में मजदूरी भुगतान अधिनियम बना।
इस मजदूरी भुगतान अधिनियम का उद्देश्य कुछ विशिष्ट उद्योगों में नियुक्त कामगारों की पारिश्रमिक के भुगतान को विनियमित करने और गैरकानूनी कटौती तथा अनुचित विलंब के विरुद्ध त्वरित एवं प्रभावी सुधार सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया।
* मजदूरी की नियमित भुगतान की व्यवस्था।
* मजदूरी से अनाधिकृत कटौती को रोकना।
मजदूरी भुगतान अधिनियम 23 अप्रैल 1936 में नियत किया गया जो कि धारा 1 से धारा 26 तक इसके विभिन्न प्रावधानों का उल्लेख है।
Note- यह अधिनियम 24 हजार से कम पारिश्रमिकी पर लागू है।
आप इस वीडियो के माध्यम से मजदूरी भुगतान अधिनियम-1936 को और भी अच्छी तरीके से समझ सकते हैं–
धारा-1 संक्षिप्त नाम, विस्तार, प्रारंभ और लागू होना–
* यह अधिनियम मजदूरी भुगतान अधिनियम 1936 कहा जाता है।
* इसका विस्तार संपूर्ण भारत में है
Note- 1970 में संशोधन किए जाने पर 1 सितंबर 1971 से जम्मू कश्मीर में लागू किया गया।
* यह रेलवे, कारखानों और उद्योग में लागू है।
* केंद्र और राज्य सरकार अन्य क्षेत्रों में 3 माह पूर्व सूचना के पूर्ण या आंशिक रूप से लागू कर सकती है।
धारा– 2 परिभाषाएं–
* इस अधिनियम में जब तक की विषय या संदर्भ में कोई बात विरुद्ध ना हो-
* मजदूरी से तात्पर्य उस परिश्रमीकी से है जिसे मुद्रा के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है और नियोजन की शर्तों को पूरा करने पर नियोजित व्यक्ति को नियोजन या नियोजन के दौरान किए गए काम के लिए देय होता है।
> मजदूरी में शामिल है–
* किसी अधिनिर्णय/समझौते/न्यायालय आदेश द्वारा देय पारिश्रमिकी,
* अतिकाल कार्य छुट्टी के दिन किए गए कार्यों के लिए पारिश्रमिकी,
* नियोजन के अंतर्गत शासक के अधीन देय पारिश्रमिकी,
* सेवा समाप्ति पर कटौतियों से साथ या कटोरियों के बिना देर अदायगी,
> मजदूरी में शामिल नहीं है–
* बोनस,
* आवास, प्रकाश, जल आदि सेवा का मूल्य,
* यात्रा भत्ता,
* पेंशन या भविष्य निधि के अंशदान,
* उपादान
धारा– 3 मजदूरी भुगतान का दायित्व–
* नियोजक,
* प्रबंधक के रूप में नामित हो,
* जिसे नियंत्रण के लिए नामित किया हो,
* रेलवे प्रशासन में नामित व्यक्ति,
धारा– 4 मजदूरी कालावधियो का नियत क्या जाना–
* कोई भी मजदूरी कालावधि 1 माह से अधिक नहीं होगी।
धारा– 5 मजदूरी के भुगतान का समय–
* जिसमें 1000 से कम कर्मचारी काम कर रहे हैं उसमें मजदूरी भुगतान कालावधी/माह समाप्ति के 7 दिनों के भीतर करना है।
* जिसमें 1000 से अधिक कर्मचारी हो उन्हें कालावधी समाप्ति के 10 दिनों के भीतर मजदूरी का भुगतान करना होगा।
* यदि किसी का नियोजन समाप्त होता है तो उनके नियोजन समाप्त होने से 7 दिनों के भीतर पूरा भुगतान होगा।
* नियोजन समाप्ति को छोड़कर भुगतान कार्य दिवस में ही होगा।
धारा– 6 वैध मुद्रा में मजदूरी का भुगतान–
* मजदूरी का भुगतान चालू सिक्को/करेंसी नोट या दोनों में किया जा सकता है।
* यदि नियोजक चाहे तो मजदूरी का भुगतान चैक या सीधे बैंक खाते में जमा कर सकते हैं।
धारा– 7 कटौतियां, जो मजदूरी में से की जा सकेगी–
कुछ अधिकृत कटौतीयों को ही छोड़कर अन्य किसी प्रकार की कटौती नहीं की जा सकती है।
> स्पष्टीकरण 1
* निम्न पद पर जाने पर मजदूरी में कमी होती है तो वह कटौती नहीं मानी जाएगी।
* निलंबन के दौरान की गई कटौती वैध है।
> स्पष्टीकरण 2
इन आधारों पर मजदूरीयो में कटौती की जा सकती है-
* जुमानी,
* अनुपस्थिति के लिए कटौतीयां,
* नुकसान या हानि के लिए कटौतीयां,
* गृहवास सुविधा के लिए कटौती,
* कर्मचारियों को दिया गया अग्रिम भुगतान कटौती,
* उधार या उसके ब्याज के लिए कटौत,
* आयकर कटौती,
* न्यायालय के आदेश अनुसार कटौती,
* मजदूरों की सहमति पर, जीवन बीमा, सहकारी सोसायटी, श्र्म संघ के लिए कटौती हो सकती है।
स्पष्टीकरण 3
कटौती की अधिकतम राशि-
* सहकारी समितियों को अंशदान देने पर मजदूरी का अधिकतम 75% तक कटौती होगी।
* किसी अन्य स्थिति में अधिकतम 50% तक कटौती होगी।
धारा– 8 जुर्माने–
* जुर्माना लगाने से पहले नियोजक को कारण बताओ नोटिस देना होगा।
* यह जुर्माने की राशि उस कालावधी मजदूरी के 3% से अधिक नहीं हो सकती है।
* 15 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति पर जुर्माना नहीं लगाया जा सकता है।
* जुर्माना लगाए जाने से 90 दिन के बाद नहीं वसूला जा सकता है।
* सभी जुर्माने वसूल की गई राशि रजिस्टर में अंकित करना होगा।
* जुर्माने में वसूल की गई राशि को केवल उस प्रतिष्ठान में नियोजित व्यक्तियों के लाभ के लिए खर्च किया जा सकता है।
धारा– 9 कर्तव्य से अनुपस्थिति के लिए कटौती–
* यदि कोई कर्मचारी नियोजन की शर्त का उल्लंघन कर, काम से अनुपस्थित होता है तो उसके लिए मजदूरी से कटौती की जा सकती है।
* कटौती वास्तविक अनुपस्थिति से अधिक नहीं की जा सकती है।
* यदि किसी प्रतिष्ठान में 10 या 10 से अधिक कर्मचारी बिना किसी सूचना के अनुपस्थित होते हैं तो अनुपस्थिति की अवधि के लिए कटौती आठ और दिनों की भी की जा सकती है।
धारा– 10 नुकसान या हानि के लिए कटौतियां–
* कर्मचारी द्वारा पहुंचाई गई हानि की कटौती की जा सकती है।
* तब तक कटौती नहीं की जा सकती है जब तक कि उसे कारण बताओ नोटिस ना दिया हो।
* जो नुकसान के लिए कटौती की गई हो वह कटौती नुकसान से ज्यादा नहीं हो सकती है।
धारा– 11 की गई या प्रदत सेवाओं के लिए कटौती–
* नियोजक, सरकार किसी कानून के अधीन स्थापित बोर्ड से अनुमति लेकर आवासीय सुविधा के लिए कटौती की जा सकती है।
* कटौती उन सेवाओं के वास्तविक मूल्य से अधिक ना हो।
धारा– 12 अग्रिमो की वसूली के लिए कटौती–
* कर्मचारियों को किसी भी प्रकार की अग्रिम व्यय के लिए कटौती की जा सकती है यात्रा व्यय को नहीं।
धारा– 12क उधारों की वसूली के लिए कठोतिया–
कर्मचारियों को दिया गया उधार पर ब्याज की कटौती राज्य सरकार द्वारा नियमों के अनुसार होगी।
धारा– 13 सहकारी सोसायटीयो को और बीमा स्कीम में भुगतान/सदायो के लिए कटौतियां–
* श्रमिको की मजदूरी से राज्य सरकार द्वारा स्वीकृति सहकारी समितियां या डाकखाना द्वारा चलाई जाने वाली बीमा योजना के देंनगी के लिए कटौती।
धारा– 13क रजिस्ट्रो और अभिलेखों का रखा जाना–
* नियोजक अपने कर्मचारियों के काम, मजदूरीयो, कटौतियों को रजिस्ट्रो में उल्लेखित करना होगा।
* हर अभिलेखों को 3 वर्ष तक रखना होगा।
धारा– 14 निरीक्षक–
* राज्य सरकार अन्य प्रतिष्ठानों के लिए भी निरीक्षक नियुक्त कर सकती है।
* निरीक्षकों को कारखानों या प्रतिष्ठानों में प्रवेश करने, अभिलेखों की जांच करने, बयान लेने आदि की शक्ति प्राप्त है।
धारा– 14क निरीक्षकों को दी जाने वाली सुविधाएं–
* निरीक्षकों को इस अधिनियम के अधीन प्रवेश, निरीक्षक जांच करने के लिए सभी उपयुक्त सुविधाएं प्रदान करना अनिवार्य है।
धारा– 15 दावे–
* अनाधिकृत कटौती या विलंब भुगतान के मामले में श्रमिक स्वयं या किसी विधि व्यवसायी या श्रम संघ के माध्यम से दावा कर सकता है।
* अनाधिकृत कटौती या अविलंब भुगतान की तिथि से 12 महीने के अंदर करना आवश्यक है।
*अनाधिकृत कटौती के मामले में 10 गुना क्षतिपूर्ति का प्रावधान है।
धारा– 16 समूह के दावे के लिए एक ही आवेदन किया जा सकता है–
* किसी समूह के परिपेक्ष में अधिनियम का उल्लंघन होने पर इसके लिए दावा करने पर एक ही आवेदन किया जा सकता है।
धारा– 17 अपील–
* प्राधिकारी के निर्णय के विरुद्ध अपील जिला न्यायालय तथा लघु न्यायालय के समक्ष की जा सकती है।
* अपील अधिकारी के निर्देश के 30 दिनों के अंदर किया जा सकता है।
धारा– 18, धारा 15 के अधीन नियुक्त प्राधिकारियों की शक्ति–
* नियुक्त सभी प्राधिकारियों को, साक्ष्य लेने,साक्ष्यो को हाजिर कराने और दस्तावेज पेश करने के प्रयोजन के लिए सिविल संहिता एवं सिविल न्यायालय द्वारा प्रदान की गई सभी शक्तियां प्राप्त होगी।
धारा– 19 (note इस धारा को 1 फरवरी 1965 को निरस्त किया गया)
धारा– 20 दंड प्रावधान–
* विहित समय में मजदूरी भुगतान नहीं करने, या विलंब भुगतान करने, या अनाधिकृत कटौती करने, विवरण नहीं भरने, या दस्तावेज नहीं रखने पर, निरीक्षक के कार्य में बाधा डालने, या गलत सूचना देने पर दोषी को 1500 रुपेश से 7500 रुपए तक दंडित किया जा सकता है।
* अपराध दोहराने पर 1 से 6 माह तक का कारावास या 3750 से 22,500 रूपये तक दंडित किया जा सकता है।
* प्राधिकारी द्वारा नियत तिथि पर भुगतान नहीं करने पर अभियुक्त को प्रत्येक दिन के लिए 750 रूपये के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
Note- धारा 21 से धारा 26 तक यह प्रतियोगि दृष्टि से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है।
धारा– 21 अपराधों के विचारण में प्रक्रिया–
धारा– 22 वादों का वर्जन–
धारा– 23 संविदा द्वारा त्याग–
धारा– 24 शक्तियों का प्रत्यायोजन–
धारा– 25 अधिनियम की संक्षिप्त सूचना का प्रदर्शन– (अंग्रेजी या बहुसंख्य भाषा में)
धारा- 26 नियम बनाने की शक्ति- (राज्य सरकार को विभिन्न धाराओं में नियम बनाने की शक्ति प्राप्त है)