सतत विकास के लिए शिक्षा एक ऐसा शिक्षण दृष्टिकोण है जो विद्यार्थियों के ज्ञान, कौशल और मूल्यों को बढ़ावा देता है, ताकि वे एक सतत और न्यायपूर्ण समाज में परिवर्तन के लिए तैयार हो सकें। सतत विकास भविष्य की पीढ़ियों की अपनी जरूरतों को पूरा करने की क्षमता से समझौता किए बिना वर्तमान की जरूरतों को पूरा करने का प्रयास करता है।
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सतत् विकास एक दूरदर्शी स्वरूप है जो आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय संगतता और पर्यावरण संरक्षण के समावेशन से विकास का आह्वान करती है तथा विकास के लिये जो भविष्य की पीढियों आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुये वर्तमान की आवश्यकताओं का पूरा करने पर जोर देता है। इसके केन्द्र में न्याय संगत एवं समावेशी समाज और लोग है।
पिछले दो या तीन दशकों से, हमने देखा है कि आर्थिक विकास की मंशा, पर्यावरण के स्वास्थ्य पर असर पड़ा है। वस्तुतः, परमाणु गैसों के कारण वायु गुणवत्ता में गिरावट और जलवायु परिवर्तन जैसे पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है।
इन सभी जीवों में सतत विकास की आवश्यकता को जन्म दिया गया, क्योंकि यदि इसे अनियमित छोड़ दिया गया तो इससे पर्यावरण को अपूरणीय क्षति हो सकती है।
1- टिकाऊ शहर और समुदाय
टिकाऊ शहर और समुदाय एक अन्य महत्वपूर्ण एसडीजी हैं। यह बुनियादी आवास, परिवहन और स्वच्छता सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करके स्थायी शहरीकरण को बढ़ावा देता है। इसमें स्थायी भूमि उपयोग प्रथाओं को बढ़ावा देना और शहरी क्षेत्रों में कार्बन पदचिह्न को कम करना शामिल है।
2- सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा
सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा भी एक महत्वपूर्ण एसडीजी है। इसका उद्देश्य पवन, सौर और पनबिजली जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना है, साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि ऊर्जा सभी के लिए सस्ती रहे।
3- जिम्मेदार उपभोक्ता और उत्पादन
जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन आवश्यक एसडीजी हैं जो टिकाऊ उपभोग पैटर्न को बढ़ावा देते हैं। इसमें अपशिष्ट को कम करना, रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देना और टिकाऊ उत्पादन प्रथाओं को बढ़ावा देना शामिल है।
4- प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण
सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण आवश्यक है। यह कचरे को कम करके, रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देकर और भविष्य की पीढ़ियों के लिए संसाधनों को संरक्षित करने के लिए उपयोग करके किया जा सकता है।
5- समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा
गरीबी कम करने और सतत विकास को आगे बढ़ाने के लिए समावेशी आर्थिक विकास को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है। इसके लिए ऐसे आर्थिक अवसर पैदा करने की आवश्यकता है जो केवल कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को लाभ पहुंचाने के बजाय सभी व्यक्तियों के लिए सुलभ हों और टिकाऊ प्रथाओं पर आधारित हों।
6- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करना
सतत विकास हासिल करने के सबसे बुनियादी तरीकों में से एक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना है। यह नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश, ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करके किया जा सकता है।
हम जिस पर्यावरण में रहते हैं उसके प्रति जिम्मेदार होने के महत्व को ध्यान में रखते हुए विकास की दिशा में काम करना ही सतत विकास है। सतत विकास का मूल विचार कल की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए आज के लिए काम करना है। सतत विकास का महत्व यह है कि यह भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों से समझौता किए बिना वर्तमान पीढ़ियों की जरूरतों को पूरा करता है। सतत विकास हमें अपने संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करना सिखाता है। नीचे सूचीबद्ध कुछ बिंदु हैं जो हमें सतत विकास का महत्व बताते हैं-
1- सतत खेती के तरीकों पर ध्यान केंद्रित
सतत विकास महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों का ख्याल रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि बढ़ती आबादी धरती माता पर बोझ न डाले। यह फसल चक्र और कुशल बीजारोपण तकनीक जैसी कृषि तकनीकों को बढ़ावा देता है।
2- जलवायु को स्थिर करने का प्रबंधन
जीवाश्म ईंधन के अत्यधिक उपयोग और जानवरों के प्राकृतिक आवास की हत्या के कारण हम जलवायु परिवर्तन की समस्या का सामना कर रहे हैं। सतत विकास प्रथाओं के माध्यम से जलवायु परिवर्तन को रोकने में सतत विकास एक प्रमुख भूमिका निभाता है। यह जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने को बढ़ावा देता है जो वायुमंडल को नष्ट करने वाली ग्रीनहाउस गैसों को छोड़ता है।
3- महत्वपूर्ण मानव आवश्यकताओं को प्रदान करना
सतत विकास भविष्य की पीढ़ियों के लिए बचत के विचार को बढ़ावा देता है और यह सुनिश्चित करता है कि संसाधन सभी को आवंटित किए जाएं। यह एक ऐसे बुनियादी ढांचे के विकास के सिद्धांत पर आधारित है जिसे लंबे समय तक कायम रखा जा सकता है।
4- सतत जैव विविधता
यदि सतत विकास की प्रक्रिया का पालन किया जाता है, तो अन्य सभी जीवित जानवरों के घर और आवास नष्ट नहीं होंगे। चूँकि सतत विकास पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करता है, यह स्वचालित रूप से जैव विविधता को बनाए रखने और संरक्षित करने में मदद करता है।
5- वित्तीय स्थिरता
जैसा कि सतत विकास स्थिर विकास का वादा करता है, जीवाश्म ईंधन के उपयोग की तुलना में ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग करके देशों की अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है, जिसकी हमारे ग्रह पर केवल एक विशेष मात्रा है।
6- पर्यावरण संरक्षण
पर्यावरण संरक्षण सतत विकास का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग इस तरह किया जाए कि वे भावी पीढ़ियों के लिए स्वस्थ रहें। इसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना, जैव विविधता का संरक्षण और उत्पादकता बनाए रखने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करना शामिल है।
पर्यावरण संरक्षण प्राप्त करने के लिए, ऐसी नीतियों और प्रथाओं को अपनाना महत्वपूर्ण है जो पर्यावरण पर मानवीय गतिविधियों के हानिकारक प्रभावों को कम करें। इसे टिकाऊ और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर स्थानांतरित करके, ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने और टिकाऊ परिवहन प्रथाओं को लागू करके ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके प्राप्त किया जा सकता है।
सतत विकास की प्रकृति को निम्नलिखित स्वरूप में स्पष्ट किया जा सकता है-
1- पर्यावरण अनुकूल गतिविधियां
हमारी हर की गतिविधियां पर्यावरण के अनुकूल होनी चाहिए जो पर्यावरण को किसी तरह की हानि ना पहुंचा सके जिससे हमारे पर्यावरणीय संसाधनों का संरक्षण को सके।
2- प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण
जो भी प्राकृतिक संसाधन है उसका संरक्षण भी बेहद जरूरी है हम इन संसाधनों का प्रयोग इस तरह से करें कि इनका दीर्घकाल तक उपयोग किया जा सके इस तरह से संरक्षित तरीके से वर्तमान में उन सभी प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग हो सके
3- गैर प्रदूषणकारी गतिविधि
हमारी सामाजिक आर्थिक गतिविधियां गैर प्रदूषणकारी होनी जरूरी है जो किसी भी तरह से पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव ना डाल सके जिससे हमारा पर्यावरण एवं पर्यावरणीय संसाधन सुरक्षित एवं संरक्षित हो सके।
4- असमानता को कम करना
सतत विकास देशों के भीतर और भीतर आय असमानता को कम करने पर जोर देता है, जिससे सभी के लिए उचित अवसर को बढ़ावा मिलता है।
5- गरीबी उन्मूलन
सतत विकास लोगों को गरीबी से बाहर निकालने का प्रयास करता है, यह सुनिश्चित करता है कि सभी को भोजन, स्वच्छ पानी और स्वास्थ्य देखभाल सहित बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुंच हो।
सतत विकास का दायरा काफी विस्तृत है जिसको हम निम्नलिखित बिंदुओं के संदर्भ में विस्तृत स्वरूप में समझ सकते हैं-
1- सामाजिक आयाम (Social Dimension)
सतत विकास के द्वारा एक ऐसे समाज का विकास किया जाता है जहां स्वस्थ समाज हो, जनसंख्या नियंत्रित हो, शिक्षित समाज हो, सामानता हो, जिससे सभी लोगों का समाज में सर्वांगीण विकास हो सके और गरिमा पूर्ण जीवन जी सके। सतत विकास के तहत समाज में विद्यमान वह सभी आदर्श स्वरूप तैयार किए जाते हैं जो उसे समाज में रहने वाले लोगों के लिए हितकर हो।
2- आर्थिक आयाम (Economic Dimension)
सतत विकास के माध्यम से आर्थिक संसाधनों का सुसंयोजित तरीके से वितरण और उपयोग किया जा सकता है जिससे वर्तमान स्वरूप में आर्थिक विकास के साथ-साथ भविष्य की संभावनाओं को भी तराशा जा सकता है। सतत विकास के माध्यम से अर्थव्यवस्था में स्थिरता बरकरार करना और सभी लोगों को रोजगार तथा गरीबी को दूर करना इसके अलावा आर्थिक उत्पादकता और आदर्श उपभोग स्तर को सुसंयोजित किया जाता है। जिससे सतत विकास धरातल पर स्पष्ट हो सके।
3- पर्यावरणीय आयाम (Environmental Dimension)
पर्यावरणीय आयाम के अंतर्गत सतत् विकास के तहत वह सभी कदम उठाए जाते हैं जिससे पर्यावरणीय संसाधन को बिना किसी नुकसान के उपयोग में लाया जा सके, जिससे पर्यावरणीय संसाधनों की उपयोगिता दीर्घकाल तक बनी रहे। ग्रीनहाउस प्रभाव को कम करना, वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना, पानी की गुणवत्ता बढ़ाने के प्रयास, वह चाहे रोजमर्रा की दिनचर्या में उपयोग की जाने वाली वस्तुएं को वह भी पर्यावरण के अनुकूल होनी चाहिए।
4- संस्थागत आयाम (Institutional Dimension)
संस्थागत आयाम भी सतत विकास में काफी महत्वपूर्ण है जिसमें नवाचार प्रगतिशील हो और आधारभूत संरचना का विकास हो। सभी लोगों को न्याय एवम मजबूत संस्थाओं का निर्माण करना जिससे सतत् विकास को धार दी जा सके।
मानव संसाधन विकास से तात्पर्य व्यक्तियों के ज्ञान, कौशल, क्षमताओं और समग्र क्षमता को सुधारने और अधिकतम करने की प्रक्रिया से है। इसमें ऐसे कार्यक्रम शामिल हैं जो व्यक्तियों को अपने काम को प्रभावी ढंग से करने और अपने संगठन या समुदाय में योगदान करने के लिए आवश्यक ज्ञान, कौशल और क्षमताओं को हासिल करने में मदद करते हैं। जैसे स्वास्थ्य और कल्याण कार्यक्रम, साथ ही साथ गरीबी को कम करने और सामाजिक गतिशीलता में सुधार लाने के उद्देश्य से की गई पहल। कुल मिलाकर, मानव पूंजी विकास को आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति के प्रमुख चालक के रूप में देखा जाता है।
मानव संसाधन के ज्ञान, कौशल, क्षमताओं जैसे अन्य विशेषताओं को संदर्भित करती है जिनका उपयोग आर्थिक मूल्य बनाने के लिए किया जा सकता है। इसे आर्थिक वृद्धि और विकास का एक महत्वपूर्ण कारक माना जाता है, क्योंकि यह उत्पादकता और नवाचार को संचालित कर सकता है। शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से मानव पूंजी का विकास किया जा सकता है, और स्वास्थ्य और पोषण में निवेश के माध्यम से इसे बढ़ाया जा सकता है।
मानव संसाधन विकास के घटक (Components of Human Resource)
1- शिक्षा और प्रशिक्षण
इसमें औपचारिक शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और व्यावसायिक विकास कार्यक्रम शामिल हैं जिनका उद्देश्य व्यक्तियों के ज्ञान और कौशल को बढ़ाना है।
2- स्वास्थ्य और पोषण
मानव पूंजी के विकास के लिए अच्छा स्वास्थ्य और उचित पोषण आवश्यक है, क्योंकि वे व्यक्तियों को कार्यबल में पूरी तरह से भाग लेने और आर्थिक विकास में योगदान करने में सक्षम बनाते हैं।
3- सामाजिक और भावनात्मक कौशल
इनमें टीमवर्क, संचार, समस्या समाधान और संघर्ष समाधान जैसे कौशल शामिल हैं जो व्यक्तिगत और व्यावसायिक सफलता के लिए महत्वपूर्ण हैं।
4- नवाचार और उद्यमिता
नवाचार और उद्यमिता को प्रोत्साहित करने से नई तकनीकों, उत्पादों और सेवाओं का विकास हो सकता है, जो बदले में आर्थिक विकास को गति दे सकते हैं।
5- इंफ्रास्ट्रक्चर और टेक्नोलॉजी
मानव पूंजी के विकास के लिए बिजली, स्वच्छ पानी, परिवहन और इंटरनेट कनेक्टिविटी जैसी बुनियादी सेवाओं तक पहुंच आवश्यक है।
6- सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्य
मानव पूंजी के विकास में कड़ी मेहनत, दृढ़ता और सीखने और अनुकूलन की इच्छा जैसे मूल्य महत्वपूर्ण कारक हैं।
7- नीतियां और संस्थाएं
सरकार की नीतियां और संस्थाएं जो मानव पूंजी विकास का समर्थन करती हैं, जैसे कि शिक्षा और प्रशिक्षण में निवेश, आर्थिक विकास पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती हैं।
मानव पूंजी व्यक्तियों के ज्ञान, कौशल और क्षमताओं को संदर्भित करती है जो किसी संगठन या समाज की उत्पादकता और आर्थिक विकास में योगदान करती है। किसी देश या कंपनी के आर्थिक विकास और प्रतिस्पर्धात्मकता को निर्धारित करने में यह एक महत्वपूर्ण कारक है।
1- आर्थिक विकास
आर्थिक वृद्धि और विकास के लिए एक कुशल और शिक्षित कार्यबल आवश्यक है। मानव पूंजी व्यक्तियों को अधिक उत्पादक और नवीन बनाने में सक्षम बनाती है, जो आर्थिक विकास को गति प्रदान करती है।
2- उत्पादकता
उत्पादकता के लिए मानव पूंजी आवश्यक है। कुशल और शिक्षित श्रमिक ऐसे कौशल के बिना कार्यों को अधिक कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से पूरा करने में सक्षम होते हैं।
3- नवाचार
मानव पूंजी नवाचार का एक प्रमुख चालक है। कुशल और शिक्षित व्यक्ति नए अवसरों की पहचान करने, नए उत्पादों और सेवाओं को विकसित करने और नए व्यवसाय मॉडल बनाने में सक्षम होते हैं।
4- प्रतिस्पर्धात्मकता
कुशल और शिक्षित कार्यबल वाली कंपनियां वैश्विक बाज़ार में अधिक प्रतिस्पर्धी हैं। वे नए उत्पादों और सेवाओं को विकसित करने में सक्षम हैं, दक्षता और उत्पादकता में सुधार करते हैं, और बाजार में परिवर्तनों के प्रति शीघ्रता से प्रतिक्रिया करते हैं।
5- अनुकूलनशीलता
बदलती परिस्थितियों के अनुकूल होने की क्षमता के लिए मानव पूंजी महत्वपूर्ण है। कुशल और शिक्षित व्यक्ति बाजार में बदलावों का जवाब देने और नई तकनीकों के अनुकूल होने के लिए बेहतर ढंग से तैयार हैं।
शिक्षा सतत विकास की आधारशिला है, जो व्यक्तियों को अधिक न्यायसंगत, पर्यावरण के प्रति जागरूक और आर्थिक रूप से लचीली दुनिया बनाने के लिए आवश्यक ज्ञान, कौशल और मूल्यों के साथ सशक्त बनाती है।
1- स्थिरता के आधार के रूप में शिक्षा
शिक्षा सतत विकास की आधारशिला है। यह लोगों, समुदायों और समाजों को हमारी परस्पर जुड़ी दुनिया द्वारा प्रस्तुत जटिल समस्याओं से निपटने के लिए आवश्यक मूल्यों, ज्ञान और क्षमताओं से लैस करने के लिए एक उपकरण के रूप में कार्य करता है।
2- पर्यावरण जागरूकता और जिम्मेदारी
शिक्षा शिक्षार्थियों को महत्वपूर्ण पारिस्थितिक मुद्दों की समझ से लैस करके पर्यावरणीय चेतना को बढ़ावा देती है, जैसे जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता हानि, तथा संसाधन का क्षरण. यह ग्रह के प्रति जिम्मेदारी की भावना पैदा करता है, व्यक्तियों को स्थायी व्यवहार अपनाने के लिए प्रेरित करता है।
3- सामाजिक समानता और समावेशन
शिक्षा के माध्यम से, समाज प्रणालीगत असमानताओं और सामाजिक अन्यायों को संबोधित कर सकता है। प्रचार करता है समावेशिता, विविधता, और सहिष्णुता, व्यक्तियों को एक निष्पक्ष, अधिक न्यायसंगत दुनिया को आकार देने में सक्रिय रूप से भाग लेने में सक्षम बनाती है।
4- तकनीकी नवाचार और अनुसंधान
शिक्षा संस्थान नवाचार और अनुसंधान के केंद्र हैं, अनुसंधान पहलों और शैक्षणिक कार्यक्रमों के माध्यम से, शिक्षा टिकाऊ प्रौद्योगिकियों और समाधानों के विकास को बढ़ावा देती है। इसमें नवीकरणीय ऊर्जा, टिकाऊ कृषि तकनीक, कुशल अपशिष्ट प्रबंधन और संरक्षण प्रयासों में प्रगति शामिल है। शिक्षा-संचालित नवाचार में उद्योगों में क्रांति लाने, सतत विकास को आगे बढ़ाने की क्षमता है।
5- लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण
स्थिरता की आधारशिला समग्र रूप से सतत विकास के लिए लैंगिक समानता हासिल करना एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है। शिक्षा यह सुनिश्चित करके लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण है कि महिलाओं और लड़कियों को समान शैक्षिक अवसर मिलें। जिन महिलाओं ने शिक्षा प्राप्त की है, उनके श्रम बल में भाग लेने, निर्णय लेने में भाग लेने और टिकाऊ नीतियों को बढ़ावा देने की अधिक संभावना है, जो सभी सतत विकास के व्यापक उद्देश्य का समर्थन करते हैं।
6- गरीबी उन्मूलन
समृद्धि का मार्ग शिक्षा गरीबी अस्थिर प्रथाओं का कारण और परिणाम दोनों है। इस चक्र को तोड़ने में शिक्षा एक शक्तिशाली उपकरण है। गरीब समुदायों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करके, व्यक्ति बेहतर नौकरी के अवसरों को सुरक्षित करने के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान प्राप्त करते हैं, जिससे वे खुद को गरीबी से बाहर निकाल पाते हैं। यह व्यक्तिगत आजीविका में सुधार करता है और प्राकृतिक संसाधनों पर तनाव को कम करता है क्योंकि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर समुदाय संसाधन-गहन प्रथाओं पर कम निर्भर होते हैं।
जीवन कौशल अनुकूल तथा सकारात्मक व्यवहार हेतु ऐसी योग्यताएं हैं जो व्यक्तियों को दैनिक जीवन की मांगों और चुनौतियों का प्रभावपूर्ण ढंग से सामना करने में समर्थ बनाती है। जीवन कौशल, व्यक्तियों में जीवन की वास्तविकताओं का सामना करने के लिये मानसिक स्वास्थ्य एवं क्षमता को प्रोत्साहित करते हैं। जीवन कौशल के द्वारा निर्णय लेने और समस्या सुलझाने, आत्मनियंत्रण, रचनात्मक और आलोचनात्मक दृष्टिकोण का विकास होता है।
जीवन कौशल हमें जीवन में सही निर्णय लेने, समस्याओं का सामना करना और उनका समाधान करना, समय का सही उपयोग करना, स्वयं को पहचानना, सकारात्मक सोच विकसित करने में मदद करतें है।
जीवन कौशल का विकास एक आजीवन प्रक्रिया है जो व्यक्तियों को आगे बढ़ने और परिपक्व बनाने में मदद करती है। आम तौर पर, कोई भी कौशल जो आपके जीवन को बेहतर बनाता है उसे जीवन कौशल माना जा सकता है।
जीवन कौशल अद्यात्मिक, नैतिक और व्यावसायिक जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। ये कौशल हमें सफलता की ओर ले जाता हैं और हमें अवसरों का सही उपयोग करने में मदद करता हैं। यदि हम जीवन कौशल को विकसित करते हैं, तो हम अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं और समृद्ध और संतुलित जीवन जी सकते हैं।
1- प्रभावी निर्णय लेने में सहायक
हमारे जीवन में हर दिन, हम ऐसी परिस्थितियों का सामना करते हैं जहां प्रभावी निर्णय लेना आवश्यक है। जीवन कौशल सीखने से हमें प्रभावी निर्णय लेने में मदद मिलती है। यह हमें अधिक आत्मविश्वासी बनाता है और अच्छी तरह से सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाता है जो संभावित रूप से जीवन बदल सकता है
2- समस्या का समाधान करने में मदद
जीवन कौशल के माध्यम से व्यक्ति अनेकों अनेक समस्याओं से अवगत होता है जिससे आगे चलकर जब उसके सामने कई तरह की मुसीबतें या समस्याएं आती है तो उनको वह बड़ी आसानी से सुलझा पाता है। यह सब वह व्यक्ति जीवन में निरंतर सीखता रहता है जिसके चलते वह ओर बेहतर तरीके से अपने कौशल का विकास करता चला जाता है।
3- भावनाओ को नियंत्रित
जीवन के अलग-अलग पड़ाव में जब व्यक्ति प्रवेश करता है तो उसे दौरान कुछ ना कुछ वह अलग सीखता रहता है जिसमें उसका भावनात्मक विकास भी निरंतर होते रहता है जिसमें वह किस समय किन भावनाओं को किस तरह से नियंत्रित करना है यह सब वह बेहतर तरीके से समझने लगता है।
4- सामाजिक दृष्टिकोण का विकास
व्यक्ति में जीवन कौशल के फल स्वरुप सामाजिक दृष्टिकोण का भी निरंतर विकास होता है जिसके चलते वह संकुचित दृष्टिकोण की वजह विस्तृत दृष्टिकोण की ओर बढ़ पाता है।
5- सकारात्मक और आदर्श व्यवहार का विकास
जीवन कौशल के द्वारा लोगों में सकारात्मक और आदर्श व्यवहार का विकास हो पता है जिसमें व्यक्ति सकारात्मक तरीके से सोचने और समझने लगता है और इसके साथ-साथ उसमें आदर्श व्यवहारों का विकास होने लगता है। जीवन कौशल के फल स्वरुप व्यक्ति सामाजिक उत्थान या सामाजिक प्रगति में अपनी प्रगति को देखने लगता है जिसके चलते वह हर वर्ग और हर समुदाय को एक सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा है।
6- आत्म जागरूकता
जीवन कौशल के माध्यम से व्यक्ति अपने आप के बारे में जान और समझ पाता है जिस्म की वह अपनी क्षमताओं और जरूरत को बड़े बेहतरी के साथ समझने लगता है।
7- सहानुभूति
जीवन कौशल के माध्यम से कोई भी व्यक्ति दूसरे के दर्द को अपना दर्द समझने लगता है और उसके प्रति वह सहानुभूति रखता है। जो भी व्यक्ति पीड़ित या शोषित है उसको जीवन कौशल के माध्यम से इस तरह से एक सकारात्मक तरीके से सहानुभूति दी जाती है की किस तरह से ना चाहते हुए भी उसको अपनत्व का भाव दिया जाता है। उस जरूरतमंद व्यक्ति की जरूरत के लिए आगे हाथ बटाए जाते हैं और उसकी मदद की जाती है।
8- प्रभावी संप्रेषण
जीवन कौशल के माध्यम से लोग अपने विचारों को बड़े ही बेहतर तरीके से प्रस्तुत कर पाते हैं जो वास्तव में वह कहना चाहते हैं वह ही एक दूसरे व्यक्ति तक पहुंचने में सफल हो पाते हैं।
जीवन कौशल शिक्षा एक ऐसा ही कौशल है। इसके अंतर्गत बच्चे में अपने जीवन का उचित निर्वहन करने तथा जीवन से संबंधित गतिविधियों को व्यवस्थित ढंग से आयोजित करने की क्षमता विकसित होती है। यह एक प्रकार की शिक्षा है जिसमें बच्चे को इस प्रकार कुशल बनाने के लिए कौशल विकसित किया जाता है कि वह विषम परिस्थितियों में भी अपनी योग्यता और बुद्धि से निर्णय ले सके। साथ ही मानव जीवन में ऐसे दुखों का सामना करना पड़ता है। जिससे वह एक कुशल नागरिक बन सके।
जीवन कौशल में शिक्षा की भूमिकाएं
यदि हम जीवन को सफलतापूर्वक जीना चाहते हैं तो हमें जीवन कौशल के महत्व को समझना होगा। और इसे अपने जीवन में लागू करना भी बहुत जरूरी है. यदि ऐसा हो तो हमारा जीवन सरल एवं सही दिशा में आगे बढ़ सकता है। जीवन कौशल हमें यह जानने में सक्षम बनाता है कि हम अपने जीवन को कैसे आसान और सरल बना सकते हैं, सकारात्मक जीवन कैसे बना सकते हैं और जीवन को सही तरीके से कैसे व्यतीत कर सकते हैं। इसलिए जीवन कौशल हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण हैं।
यह सभी प्रकार की परिस्थितियों के अनुकूल ढलने और समाज के हर पहलू में सफल होने की क्षमता को निखारता है। नई पीढ़ी के जीवन में जीवन कौशल की कमी पर ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि यह जीवन में महत्वपूर्ण है। जीवन कौशल के अभाव के कारण न केवल व्यक्तिगत जीवन बल्कि पेशेवर जीवन और करियर भी प्रभावित होता है।
जीवन कौशल की शिक्षा देकर विद्यार्थियों में आत्मविश्वास विकसित किया जा सकता है। यह उन्हें सहयोगी और संचारी बनाता है। यह उन्हें किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति में त्वरित कार्रवाई करने के लिए तैयार करता है। जीवन कौशल में शिक्षा का निम्नलिखित स्वरूप में भूमिकाएं देखा जा सकता है-
1- बौद्धिक क्षमता का विकास
शिक्षा के माध्यम से लोगों को शिक्षा प्रदान की जाती है जिससे उनकी सोने और समझने की क्षमता विकसित होती है जिसके फल स्वरुप वह किसी भी संदर्भ में अपने विचारों को बड़े ही बखूबी से रख पाते हैं तो इससे जग जाहिर होता है कि उनकी बौद्धिक क्षमता का विकास हुआ है जो की शिक्षा के फल स्वरुप ही होता है। जिसके द्वारा जीवन की हर एक मोड में जो भी समस्याएं उनके सामने आएगी उनका बड़ी आसानी से वह समाधान निकाल सकेंगे।
2- वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास
शिक्षा लोगों को हर संभव वैज्ञानिकता के आधार पर सोचने और समझने के लिए प्रोत्साहित करती है जिसके द्वारा हर एक चीजों को तथ्यों के आधार पर ही माना जाता है किसी भी प्रकार के अंधविश्वास एवं पूर्वाग्रहों को जगह नहीं दी जाती है इन सब में शिक्षा का एक महत्वपूर्ण रोल होता है। जब लोगों को वैज्ञानिकता के आधार पर शिक्षा दी जाएगी तो उनके अंदर वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होगा जो आगे चलकर जीवन के हर एक पड़ाव में इसका भरपूर लाभ उठाएंगे।
3- तार्किकता का विकास
जब शिक्षा के माध्यम से लोगों का बौद्धिक विकास किया जाता है तो इसके द्वारा लोगों में तार्किक क्षमताएं विकसित होने लगती है जिससे वह समाज में घटित होने वाली या अपने साथ घटित होने वाली घटनाओं के साथ वह तार्किकता के आधार पर तर्क वितर्क करने लगते हैं जो कहीं ना कहीं उनकी रोजमर्रा की दिनचर्या से लेकर के उनके व्यावसायिक जीवन में महत्वपूर्ण रोल अदा करते हैं।
4- सामाजिकता का विकास
लोगों को शिक्षा सामाजिक एवं व्यवहारिक होना भी सिखाती है जब लोगों को बाकी सभी के साथ एक साथ शिक्षा प्रदान की जाती है तो वहां पर बैठे अनेकों अनेक छात्र अलग-अलग समाज अलग-अलग पृष्ठभूमि से आते हैं तो इससे स्वाभाविक है कि वह अनेक प्रकार की पृष्ठभूमि से आए हुए छात्रों की स्थितियों के बारे में अवगत होंगे जिससे उनके अंदर एक सामाजिकता का विकास हो पाएगा जो आगे उनके जीवन में किसी न किसी रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
5- संप्रेषण कौशल का विकास
जब छात्रों को शिक्षा प्रदान की जाती है तो उस दौरान अनेक प्रकार की ऐसी क्रिया विधियां करवाई जाती है जिसमें हर एक छात्र उसमें प्रतिभा लेता है और अपने विचारों को प्रस्तुत करता है जहां से वह यह सीख लेता है कि किस तरह से मुझे अपनी बात को दूसरे तक पहुंचानी है कि मैं वास्तव में क्या कहना चाहता हूं और लोगों तक वह बात मैं किस तरह से बेहतर तरीके से पहुंचा सकूं तो यह संप्रेषण कौशल का विकास भी शिक्षा के माध्यम से बड़ी ही बेहतरी के साथ होता है। यह संप्रेषण कौशल जीवन की हर एक पड़ाव पर हर एक व्यक्ति को काम आता है।
समय प्रबंधन किसी के समय के प्रबंधन की एक प्रक्रिया है ताकि इसे सबसे प्रभावी ढंग से और कुशलता से खर्च किया जा सके। समय प्रबंधन आपकी कुशलता बढ़ाने के लिए विशिष्ट कार्यों पर खर्च किए गए समय को सचेत रूप से योजना बनाने और नियंत्रित करने की प्रक्रिया है। आप समय-सीमा निर्धारित करते हैं, कार्यों की सूची बनाते हैं और कुछ गतिविधियों को पूरा करने के लिए स्वयं को छोटे-छोटे टारगेट दिए जाते हैं।
खुद को प्रेरित करना समय प्रबंधन का एक मुख्य हिस्सा है और इसमें न केवल खुद को प्रेरित करने के लिए बल्कि काम करने और अधिक कुशलता से जीने के लिए अच्छी आदतें विकसित करने के लिए भी थोड़ा प्रयास करना पड़ता है।
अच्छी दिनचर्या और आदतें विकसित करने के लिए, आप यह जानकर शुरुआत कर सकते हैं कि वहां कौन सी रणनीतियाँ और सर्वोत्तम प्रथाएँ हैं। आप इन्हें अपने जीवन में प्रयोग करके देख सकते हैं कि आपके लिए क्या काम करता है।
टाइम मैनेजमेंट न केवल हमारे व्यावसायिक जीवन में बल्कि हमारे व्यक्तिगत जीवन में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। समय प्रबंधन हमारे दिन को व्यवस्थित करता है, ताकि हम अपने हर पल का सबसे अच्छा उपयोग कर सकें। उत्कृष्ट समय प्रबंधन जीवन में एक स्वस्थ संतुलन बनाने में मदद करता है।
1- उच्च उत्पादकता
जब आपके पास कोई योजना होती है, तो आपको बस उसे सही तरीके से लागू करना होता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कार्यों के बीच क्या करना है और क्या नहीं करना है, लेकिन आपको यह पता लगाने की जरूरत है कि आगे क्या करना है ताकि आप अपनी उत्पादकता बढ़ा सकें।
2- प्रेरणा स्तर को बढ़ाना
जब आप एक लक्ष्य निर्धारित करते हैं, तो परिणामस्वरूप आपकी प्रेरणा का स्तर बढ़ने की संभावना होती है। अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करें ताकि आप खुद को साबित कर सकें।
3- बेहतर फैसला लेने में सहायक
समय प्रबंधन आपके समय की सही योजना बनाने के बारे में है। जैसा कि आप अपने व्यवसाय की योजना बनाते हैं, बेहतर निर्णय लेने में आपकी सहायता करने के लिए सभी पेशेवरों और विपक्षों का वजन करें।
4- काम की गुणवत्ता में वृद्धि
जब आप देखते हैं कि दिन के दौरान क्या करना है और क्या करना है, तो नियोजन भाग का स्वतः ही ध्यान रखा जाता है। आपको केवल उन कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो आपके परिणामों की गुणवत्ता में सुधार करेंगे।
5- तनाव को कम करना
समय प्रबंधन आपको अपने कार्यों को कम समय में और कम प्रयास में पूरा करने में मदद कर सकता है। इस प्रकार, स्वस्थ तरीके से तनाव का प्रबंधन उत्साहित और उत्पादक बने रहने का एक शानदार तरीका हो सकता है।
6- समय का सदुपयोग
अपना समय आलस्य में इधर-उधर भटकने या गपशप करने में व्यतीत न करें। अपना काम देखें और उसे समय पर पूरा करें। याद रखें कि आपका संगठन यह उम्मीद नहीं करता है कि आप लगातार ऑनलाइन गेम में संलग्न रहेंगे या अन्य लोगों के कार्यस्थलों में झांकेंगे। अभी जो आपका मन करे वो करें और फिर अपना काम पूरा करें। अंतिम संभावित क्षण तक प्रतीक्षा न करें।
तनाव प्रबंधन विभिन्न प्रकार के कौशल और तकनीकों को संदर्भित करता है जिनका उपयोग तनाव से निपटने के लिए किया जाता है। तनाव प्रबंधन का उपयोग तनाव के कारण होने वाले नकारात्मक प्रभावों को कम करने और किसी व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थिति में सुधार करने के लिए किया जाता है।
तनाव प्रबंधन में मानसिक और भावनात्मक संतुलन बनाए रखने के लिए तनाव कारकों को पहचानना, समझना और प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया देना शामिल है। इसमें व्यक्तियों को तनाव से निपटने और इसके प्रतिकूल प्रभावों को कम करने में सहायता करने के लिए रणनीतियों और तकनीकों को अपनाना शामिल है। तनाव अलग-अलग कारणों से उत्पन्न हो सकता है, जिसमें काम, रिश्ते, वित्तीय दबाव या व्यक्तिगत अपेक्षाएं शामिल हैं। तनाव प्रबंधन का लक्ष्य व्यक्तियों को तनाव को सकारात्मक और रचनात्मक तरीके से संबोधित करने के लिए आवश्यक उपकरण और मानसिकता प्रदान करना है।
यदि आपका तनाव का स्तर बहुत अधिक है और आपकी भलाई के लिए नकारात्मक प्रभाव डालता है, तो आपको मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के लिए नियंत्रण रखने की आवश्यकता है। तनाव प्रबंधन में अंतिम लक्ष्य एक संतुलित जीवनशैली है , जिसमें काम और व्यक्तिगत जीवन के लिए पर्याप्त समय होता है और साथ ही तनाव में भी स्वयं पर संयम ,दृडता और चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत होती है जििसके कुछ महत्व और निम्नलिखित है-
(1) अपने जीवन में तनाव के कारकों की पहचान
तनाव प्रबंधन के माध्यम से सबसे पहले उन सभी कारकों की पहचान की जाती है जिनकी वजह से व्यक्ति तनाव से ग्रसित होता है इसके बाद उन सभी कारकों के आधार पर तनाव को दूर करने का प्रयास किया जाता है। ऐसा करने से आपको तनाव के लिए तैयार होने और संभावित रूप से जोखिम से बचने में मदद मिलती है, जिससे स्वस्थ मुकाबला करने और समाधान की संभावना में सुधार होता है।
(2) मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार
प्रभावी तनाव प्रबंधन समग्र कल्याण को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह व्यक्तियों को चिंता और अवसाद जैसे मानसिक स्वास्थ्य विकारों के विकास के जोखिम को कम करने में मदद करता है। इसके अतिरिक्त, यह उच्च रक्तचाप या हृदय रोग जैसी तनाव संबंधी स्थितियों की संभावना को कम करके बेहतर शारीरिक स्वास्थ्य में योगदान देता है।
(3) आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास में वृद्धि
तनाव प्रबंधन के माध्यम से व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ने लगता है क्योंकि इसके द्वारा व्यक्ति के उन सभी कारकों को चिन्हित किया जाता है जिनकी वजह से वह तनाव से ग्रसित है, उसके बाद उन कारकों को लेकर के काम किया जाता है जिससे व्यक्ति को तनाव से बाहर निकला जा सके। इसके फलस्वरुप व्यक्ति में आत्मविश्वास एवं आत्म सम्मान की जागृति होती है वह अब यह समझने लगता है कि मैं करने में सक्षम हूं और कर सकता हूं।
(4) बेहतर निर्णय लेने की क्षमता
जब तनाव प्रबंधन की बात होती है तो व्यक्ति किस तरह से हर एक निर्णय को बेहतर तरीके से ले सके इस चीज को ध्यान में रखा जाता है ताकि उसके द्वारा लिया गया हर एक निर्णय उसके लिए उपयोगी हो सके।
(5) बेहतर प्रदर्शन
अत्यधिक तनाव हमारे प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। तनाव प्रबंधन तकनीकों को लागू करने से व्यक्तियों को अपना ध्यान, एकाग्रता और निर्णय लेने के कौशल को विकसित करने का लाभ मिलता है। इसके परिणामस्वरूप, जीवन के विभिन्न पहलुओं में उत्पादकता में वृद्धि होती है, चाहे काम पर, स्कूल में, या व्यक्तिगत परियोजनाओं में।
संघर्ष अपरिहार्य है. अनसुलझे मतभेद जटिल, लंबे समय से चले आ रहे विवादों में बदल जाते हैं जो तनाव का कारण बनते हैं, रिश्तों को नुकसान पहुंचाते हैं, विश्वास को नष्ट करते हैं, मनोबल को चोट पहुंचाते हैं और उत्पादकता में बाधा डालते हैं। संघर्षों और असहमतियों को बदनाम किया जाता है, लेकिन वे हमेशा एक संकेत होते हैं कि परिवर्तन की आवश्यकता है, आ रहा है, या पहले ही हो चुका है। सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करना और इन कौशलों का अभ्यास करना संघर्ष को कम कराने वाला बना सकता है।
संघर्ष प्रबंधन असहमति और विवादों को प्रबंधित करने के लिए रचनात्मक और सम्मानजनक तरीके खोजने के लिए प्रक्रियाओं, उपकरणों और कौशल का उपयोग है। इसमें प्रभावी संचार कौशल, जैसे सक्रिय सुनना और मुखरता से बोलना, के माध्यम से सहयोगात्मक रूप से संघर्ष को हल करने की क्षमता शामिल है। संघर्ष को प्रबंधित करना एक कला है. यह ऐसी चीज़ है जिसमें आप सुधार करते हैं बेहतर संप्रेषण के जरिए और मध्यस्थता के माध्यम से संघर्ष को काम किया जा सकता है।
संघर्ष तब उत्पन्न होता है जब व्यक्तियों के हित, राय और विचार प्रक्रियाएँ भिन्न होती हैं और वे एक-दूसरे के साथ समझौता करने को तैयार नहीं होते हैं। हमेशा कुछ हद तक तालमेल बिठाना और समस्या का समाधान ढूंढने का प्रयास करना बुद्धिमानी है न कि शिकायत करने और लड़ने से। संघर्ष और असहमति केवल नकारात्मकता को जन्म देती है और चीजें कभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचतीं। यह केवल तनाव बढ़ाता है और जीवन को नरक बना देता है। यह वास्तव में आपको थका देता है और आपकी प्रतिष्ठा को ख़राब कर देता है। इसलिए हमें संघर्ष प्रबंधन की ओर बढ़ना चाहिए संघर्ष प्रबंधन के द्वारा वास्तव में सकारात्मक प्रभाव देखा जाता है जो हम सब की व्यक्तिगत एवं सामाजिक प्रतिष्ठा, सम्मान, संबंधों रक्षा करता है। संघर्ष प्रबंधन की कुछ निम्नलिखित प्रकार के महत्व है-
(1) उत्पादकता में वृद्धि
संघर्ष प्रबंधन के माध्यम से संघर्षों को काम किया जाता है जो समय एवं संसाधन संघर्ष में व्यर्थ होते हैं उन्हें संघर्ष प्रबंधन के माध्यम से एक बेहतर दिशा की ओर संचारित किया जाता है जिससे यह स्वाभाविक है की उत्पादकता में वृद्धि होती है।
(2) बेहतर संप्रेषण स्थापित
संघर्षों को आपसी बातचीत के माध्यम से कम किया जा सकता है यदि आपसी बातचीत की कमी होती है तो कहीं ना कहीं दोनों ही पक्षों में संघर्ष बढ़ता जाता है। संघर्ष प्रबंधन में बातचीत के माध्यम से आपसी संघर्ष को काम किया जाता है जिससे बेहतर संबंधों को स्थापित किया जाता है।
(3) आपसी टकराव में कमी
संघर्ष में एक दूसरे को घृणा, द्वेष की भावना से देखा जाता है जबकि संघर्ष प्रबंधन के माध्यम से यह सभी प्रकार के जो टकराव होते हैं इनका काम करने का प्रयास किया जाता है जिसमें अनेक प्रकार की तकनीकों को अपनाया जाता है।
(4) बेहतर मानवीय संबंध
संघर्ष प्रबंधन के द्वारा आपसी मानवीय संबंध को बेहतर किया जाता है जिसमें किसी भी प्रकार की घृणा और द्वेष ना हो जिसके फल स्वरुप बेहतर मानवीय संबंध स्थापित हो पाते हैं।
(5) आत्म सम्मान में वृद्धि
जब किसी भी तरह के आपसी टकराव न होने पर और किसी भी प्रकार की घृणा और द्वेष की भावना ना हो तो यह स्वाभाविक है कि व्यक्तियों में आत्म सम्मान की जागृति होगी यह सब संघर्ष प्रबंधन के द्वारा होता है।
आपदा अचानक होने वाली विध्वंसकारी घटना को कहा जाता है, जिससे व्यापक भौतिक क्षति और जान-माल का नुकसान होता है। यह वह प्रतिकूल स्थिति है जो मानवीय, भौतिक, पर्यावरणीय एवं सामाजिक क्रियाकलापों को व्यापक तौर पर प्रभावित करती है। आपदा दो प्रकार की होती है एक मानव निर्मित और दूसरी प्राकृतिक आपदा होती है।
आपदा प्रबंधन यह दर्शाता है की आपदा आने पर हम कैसे कई जीवन और संपत्ति की रक्षा या संरक्षण कर सकते हैं। आपदा प्रबंधन का अर्थ है कि ऐसे सभी उपाय किए जाने चाहिए जिससे खतरा आपदा का रूप न ले सके। चूंकि, हम कई प्राकृतिक खतरों को आने से नहीं रोक सकते हैं, लेकिन जीवन और संपत्ति के नुकसान को कम करने के लिए उचित प्रबंधन द्वारा उनके हानिकारक प्रभावों को कम कर सकते हैं। आपदाएं प्राकृतिक या मानवीय खतरों के परिणाम हैं।
आपदा प्रबंधन का उद्देश्य आपदाओं की घटना को कम करना और उन आपदाओं के प्रभाव को कम करना है जिन्हें रोका नहीं जा सकता है। आपदा आते ही आपदा प्रबंधन बल हरकत में आ जाते हैं और राहत, बचाव और पुनर्वास प्रक्रिया में मदद करते हैं। ये प्रशिक्षित व्यक्ति हैं और इन्हें किसी आपदा या प्राकृतिक आपदा की स्थिति में प्रदर्शन करने के लिए व्यापक प्रशिक्षण दिया जाता है और वे जीवन के नुकसान को कम करने और स्थानीय लोगों को सामान्य जीवन में वापस लाने में मदद करने के लिए एक टीम के रूप में काम करते हैं। आपदा प्रबंधन के निम्नलिखित महत्व है-
(1) आपदा के कारणों की पहचान करना
आपदा प्रबंधन के माध्यम से आपदा के कारणों की पहचान की जाती है कि किन कारणों से आपदा घटित हुई है और उसके बाद उन कारणों पर उचित तरीके से कार्य किया जाता है ताकि आपदा से प्रभावित लोगों को सहायता प्रदान की जाए और भविष्य में इस तरह की आपदा से किस तरह से बचा जा सके।
(2) जोखिम का आकलन, समीक्षा और नियंत्रण करना
आपदा घटित होने पर आपदा प्रबंधन के द्वारा आपदा का आकलन किया जाता है की किस तरह से आपदा घटित हुई है क्या कारण थे इस तरह से आपदा की संपूर्ण समीक्षा करने के बाद आपदा प्रबंधन के जरिए आपदा को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है और आपदा के दौरान हुए नुकसान को काम करने का प्रयास किया जाता है।
(3) पर्यावरण की सुरक्षा
आपदा से हमारे पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है और आपदा प्रबंधन के द्वारा पर्यावरण संसाधनों की भी सुरक्षा की जाती है ताकि पर्यावरण को भी सुरक्षित बचाया जा सके जिससे उन पर्यावरणीय संसाधनों की उपयोगिता आगे मानव के लिए सुनिश्चित की जा सके।
(4) पीड़ितों की रक्षा
आपदा के दौरान आपदा से प्रभावित लोगों की रक्षा आपदा प्रबंधन के माध्यम से की जाती है जिसमें यह प्रयास किया जाता है कि जो भी व्यक्ति आपदा के दौरान उस आपदा की चपेट में आया है उसे किस तरह से राहात दी जाए वह चाहे चिकित्सा सहायता हो, पुनर्वास हो, आदि प्रकार से पीड़ितों की रक्षा की जाती है।
(5) मानवीय क्षति को कम करना
आपदा प्रबंधन के माध्यम से जान माल की क्षति को काम किया जाता है जिसमें सामाजिक क्षति एवं आर्थिक क्षति को काम करना शामिल है। आपदा प्रबंधन के जरिए ही मानव और मानव के सभी संसाधनों को आपदा से बचाने का प्रयास किया जाता है।
मूल्य वह है जो कोई व्यक्ति चाहता है, या पसंद करता है। जिनकी सहायता से व्यक्ति को अपने कर्य और रोजमर्रा की दिनचर्या तथा व्यवसाय के क्षेत्र में सहायता मिलती है क्योंकि मल्य उन सबको आसान बनाता है। मूल्य का अर्थ है ‘मूल्यवान होना या मजबूत होना।’ शब्दकोश ‘मूल्य ‘ शब्द का अर्थ सापेक्ष मूल्य, उपयोगिता या महत्व, उत्कृष्टता की डिग्री और कुछ (एक गुणवत्ता के रूप में) आंतरिक रूप से मूल्यवान के रूप में देता है।
(1) व्यक्तिगत मूल्य
ये वे मूल्य हैं जो मानव व्यक्तित्व के विकास या मानव व्यक्तित्व की पहचान और सुरक्षा के व्यक्तिगत मानदंडों जैसे ईमानदारी, वफादारी, सच्चाई और सम्मान से संबंधित हैं। मूल्य हमारे दिन-प्रतिदिन के व्यवहार को विनियमित करने के सामान्य सिद्धांत हैं। वे न केवल हमारे आचरण को दिशा देते हैं बल्कि स्वयं में आदर्श एवं उद्देश्य भी हैं। हमें मदद करने और जीवन में सही रास्ते पर चलने के लिए व्यक्तिगत मूल्यों की आवश्यकता है। जो व्यक्ति अच्छे मूल्यों को अपनाता है वह आगे चलकर एक जिम्मेदार व्यक्ति बनता है और वह सही और गलत की पहचान करने में सक्षम होता है। साथ ही, वह जीवन में समझदारी से निर्णय लेने में सक्षम होता है।
(2) सामाजिक मूल्य
सामाजिक मूल्य मानव जीवन के सामाजिक पहलुओं से संबंधित मूल्य (मानक) हैं। उदाहरण के लिए उसकी बौद्धिकता के आधार पर सामाजिक स्थिति, व्यावसायिक प्रदर्शन, न्याय, दया, उदारता, सहिष्णुता, देशभक्ति, पूर्णता, उत्कृष्टता आदि। व्यावसायिक संगठनों से अपेक्षा की जाती है कि वे शिक्षाप्रद विज्ञापन, सांस्कृतिक कार्यक्रम, राष्ट्रीय एकता कार्यक्रम, शैक्षणिक संस्थानों को सहायता के माध्यम से सामाजिक मूल्यों के विकास में भाग लें।
(1) मूल्य निर्णय लेने में सहायता करते हैं
एक व्यक्ति अपने द्वारा ग्रहण किए गए मूल्यों के आधार पर यह निर्णय लेने में सक्षम होता है कि क्या सही है और क्या गलत है। जीवन में विभिन्न चरणों में यह निर्णय लेने की प्रक्रिया को आसान बनाता है। अच्छे मूल्यों वाला व्यक्ति हमेशा दूसरों की तुलना में बेहतर निर्णय लेने की संभावना रखता है।
(2) मूल्य हमारे जीवन को दिशा दे सकते हैं
जीवन में, मूल्य हमें स्पष्ट लक्ष्य देते हैं। वे हमेशा हमें बताते हैं कि हमें विभिन्न परिस्थितियों में कैसा व्यवहार और कार्य करना चाहिए और हमारे जीवन को सही दिशा देनी चाहिए। जीवन में अच्छे संस्कार वाला व्यक्ति ही बेहतर कार्यभार ग्रहण कर सकता है।
(3) मूल्य चरित्र का निर्माण कर सकते हैं
यदि कोई व्यक्ति एक मजबूत चरित्र चाहता है, तो उसके पास ईमानदारी, वफादारी, विश्वसनीयता, दक्षता, निरंतरता, करुणा, दृढ़ संकल्प और साहस जैसे अच्छे मूल्य होने चाहिए। मूल्य सदैव हमारे चरित्र निर्माण में सहायक होते हैं।
(4) आर्थिक प्रगति
सामाजिक मूल्य किसी समाज की आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देते हैं। उदाहरण के लिए, यदि प्रत्येक व्यक्ति द्वारा सत्य और ईमानदारी का अभ्यास किया जाता है, तो यह जीवन के सभी क्षेत्रों जैसे व्यवसाय, शिक्षा, राजनीतिक, सामाजिक सेवाओं आदि में निष्पक्ष व्यवहार को बढ़ावा देगा।
(5) सामाजिक विकास
सामाजिक मूल्य सामाजिक विकास को भी बढ़ावा देते हैं, उदाहरण के लिए, कई उद्योगपतियों और धर्मार्थ संस्थानों ने उदारता दिखाई है और आम लोगों के लाभ के लिए स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, सांस्कृतिक केंद्र शुरू किए हैं।
(6) सामाजिक संबंध
सहयोग, सहिष्णुता, वरिष्ठों के प्रति सम्मान आदि जैसे सामाजिक मूल्य सामाजिक संबंधों या संबंधों को बेहतर बनाते हैं। जब व्यक्ति दूसरों की ओर सहयोग का हाथ बढ़ाता है तो शत्रुओं को भी अपने शत्रु संबंधों पर अंकुश लगाना पड़ता है।
मूल्यों के विकास में शिक्षक की भूमिका
आधुनिक युग में शिक्षकों की भूमिका बहुत अधिक महत्वपूर्ण हो गई है क्योंकि वे छात्रों को न केवल ज्ञान देते हैं, बल्कि उन्हें जीवन में जरूरी कौशल भी सिखाते हैं। शिक्षक छात्रों के साथ सहयोग करते हुए उन्हें नैतिक मूल्यों के बारे में भी समझाते हैं जो एक अच्छे नागरिक के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं।
बालको में मूल्यों के विकास हेतु स्वयं शिक्षकों द्वारा आर्दश प्रस्तुति की जानी चाहिए। शिक्षक के आचरण का अनुकरण करके ही बच्चे सत्य एवं न्याय जैसे जीवन मूल्यों को सीख सकेगें, ये जीवन मूल्य पुस्तकों के माध्यम से नहीं सिखाये जा सकते हैं। अतः शिक्षकों द्वारा प्रस्तुत आचरण छात्रों में उचित मूल्यों का विकास करने में महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करता है। मूल्यों के विकास में शिक्षक की निम्नलिखित भूमिकाएं हैं –
(1) विभिन्न नैतिक गुणों का विकास करना
विद्यालयी शिक्षकों द्वारा अपने विद्यार्थियों में शांति, प्रेम, धर्मनिरपेक्षता, एकता, सहयोग, सांस्कृतिक, संवर्धन, सृजनात्मकता, राष्ट्रीय एकता एवं बन्धुत्व आदि गुणों का विकास निरंतर किया जाता है।
(2) आत्म-सम्मान का भाव विकसित करना
शिक्षकों द्वारा अपने विद्यार्थियों के व्यक्तिगत गुणों का सम्मान करते हुए उनमें आत्म-सम्मान व आत्म-प्रकाशन के भाव विकसित किए जाते हैं इसके लिए उन्हें अपने विद्यार्थियों को हीनदृष्टि से न देखते हुए उन्हें श्रेष्ठता प्रदान की जाती है।
(3) अपने विचारों को प्रकट करने के अवसर देना
शिक्षक को विद्यार्थियों के स्वानुभव प्रकट करने के अवसर प्रदान करना चाहिए। इस हेतु सप्ताह में एक दिन के क्रियाकलाप ऐसे हों जिनमें विद्यार्थी अपने विचार प्रकट करें। जिससे विद्यार्थी अपने विचारों को बड़ी आसानी से प्रकट कर पता है और उनमें इस तरह की मूल्य का विकास होने लगता है।
(4) अनुशासन बनाये रखना
अनुशासनहीन छात्रों को केवल दण्डित नहीं करना चाहिए, बल्कि उनकी योग्यता को जानकर उन्हें अन्य सृजनात्मक क्रियाओं में संलग्न किया जाए ताकि उनके नकारात्मक व्यवहारों को पनपने का अवसर न मिल पाए। यह सब एक शिक्षक के द्वारा किया जाता है जिससे छात्रों में अनुशासन का गुण विकसित होता है।
(5) अभिप्रेरणा
शिक्षक अपने विद्यार्थियों को महापुरुषों के विचार एवं आचरण को आत्मसात करने के लिए प्रेरित करें। जिससे छात्रा उन महापुरूषों जैसा बनने का प्रयास करते हैं।
BY: TEAM KALYAN INSTITUTE
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