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ड्रैगन फ्रूट (DRAGON FRUIT)

ड्रैगन फ्रूट (DRAGON FRUIT)

ड्रैगन फ्रूट दुनिया में अपने उपभोग, स्वास्थ्य के लिए और औषधीय लाभों के लिए बड़ी ही मुखरता से सामने उभर कर आया। ड्रैगन फ्रूट पौधा बेल नुमा होता है जो कीटों, रोगो के लिए प्रतिरोधी है इसके लिए कम पानी की आवश्यकता होती है तथा संसाधन और रखरखाव के लिए कम साधनों की आवश्यकता होती है। यह पौधा लगभग 20 से 25 वर्ष तथा बारहमासी पौधा है। ड्रैगन फ्रूट एक किसानों को ऐसा अवसर प्रदान करता है जोकि बाजार में मांग को पूरा करने की अवसर प्रदान करता है साथ ही वैश्विक निर्यात को प्रोत्साहन करता है। ड्रैगन फ्रूट सामान्य तापमान व पानी की कमी के साथ उगाया जा सकता है बस शर्त यह होती है कि भूमि में अतिरिक्त नमी ना हो।

मिट्टी थोड़ी अम्लीय (pH 5.5 – 6.0) दोमट, जलवायु का तापमान 20 डिग्री से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच ड्रैगन फ्रूट के बागों की व्यासायिक खेती के लिए उपयुक्त है।

हम आए दिनों यह देखते हैं कि फसल विविधता ना होने के कारण मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो जाती है तथा बाढ़ की स्थिति भी देखने को मिलती है जिससे कृषि अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है कहीं-कहीं पर पानी की कमी देखी जाती है तो ऐसी स्थिति में हम जल्द ही ऐसी फसलों या फलों की प्रजातियों की पहचान करनी चाहिए जो हमारी अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी बूटी का काम करें।

ड्रैगन फ्रूट एक ऐसी फसल है जो उस आवरण का गंभीर मूल्यांकन करने से बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है।

ड्रैगन फ्रूट पल्प से भरा होता है और इसके अंदर काले रंग की बीज होते हैं।

ड्रैगन फ्रूट मुख्य दो चार प्रकार के होते हैं।

(1) बाहर से लाल और अंदर अल्प सफेद।

(2) बाहर से लाल और अंदर पल्प लाल।

(3) वहां से लाल अंदर से पल्प बैगनी रंग का।

(4) बाहर से पीला और अंदर से पल्प सफेद।

विश्व बाजार में चार अलग-अलग प्रमुख प्रकार के ड्रैगन फ्रूट

 

हालांकि इस फूड को विदेशी फ्रूट भी कहा जाता है क्योंकि इसका उत्पादन सबसे पहले मेक्सिको में किया गया अब धीरे-धीरे यह फल भारतीय किसानों और उपभोक्ताओं के बीच लोकप्रिय होने लगा है लेकिन भौगोलिक विविधता व अनेक कारणों के चलते ड्रैगन फ्रूट का विस्तार जो होना चाहिए था वह नहीं हो पा रहा है। जिसके लिए हमें विभिन्न परिस्थितियों का उचित मूल्यांकन करके लाभकारी स्वरूप में ड्रैगन फ्रूट को पेश करना होगा।

इसके अंतर्गत हम इन मुख्य बिंदुओं पर गौर करने की कोशिश करें।

(1) दुनिया भर में ड्रैगन फ्रूट की स्थिति।

(2) भारत में ड्रैगन फ्रूट की स्थिति।

(3) उत्तराखंड में ड्रैगन फ्रूट की स्थिति।

(4) ड्रैगन फ्रूट की खेती में बाधाएं

(5) जल और पोषक तत्व

(6) ड्रैगन फ्रूट में कीट एवं रोग तथा समाधान

(7) उत्तराखंड में ड्रैगन फ्रूट को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत पहलू

  • दुनिया भर में ड्रैगन फ्रूट की स्थिति।

 सबसे पहले ड्रैगन फ्रूट की व्यावसायिक स्तर पर खेती 1990 में दक्षिणी मेक्सिको के निवासियों द्वारा की जाने लगी। वर्तमान में चीन, मेक्सिको, वियतनाम, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, थाईलैंड, जैसे देशों में बड़ी तेजी से विस्तार होने लगा।

प्रमुख ड्रैगन फ्रूट उत्पादक देश

स्रोत– ICAR शोध पत्र 2017-18

इस तालिका के अनुसार तीन प्रमुख देश वियतनाम, चीन, इंडोनेशिया दुनिया के ड्रैगन फ्रूट उत्पादन में 93% से अधिक का योगदान करते हैं। जिसमें अकेले वियतनाम का हिस्सा विश्व में 51.1% है। ड्रैगन फ्रूट की खेती वियतनाम के सभी प्रांतों में की जाती है। दूसरे नंबर में चीन जिसका विश्व उत्पादन में 33.3% का योगदान है। तीसरा स्थान इंडोनेशिया का है जिसका विषय उत्पादन में 10.6% का योगदान है।

विश्व बाजार में ड्रैगन फ्रूट की मांग निरंतर बढ़ती जा रही है, world Dragonfruit.net.vn वेबसाइट हाल के अनुमान के अनुसार पूरी दुनिया में ड्रैगन फ्रूट की मांग लगातार बढ़ रही है।

  • भारत में ड्रैगन फ्रूट की स्थिति।

भारत में ड्रैगन फ्रूट 1990 के अंत में प्रवेश कर गया जिसके बाद 2005 से 2017 के बीच विभिन्न राज्यों में इसकी खेती का विस्तार धीरे-धीरे होने लगा। सबसे पहले कर्नाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तेलंगना, अंडमान निकोबार दीप समूह, के किसानों द्वारा ड्रैगन फ्रूट की खेती की जाने लगी।

लेकिन अब इसकी खेती भारत के अन्य राज्यों में भी की जाने लगी जिसमें कि पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आदि राज्यों में की जाने लगी।

भारत में ड्रैगन फ्रूट का उत्पादन 2020 में 3000 से 4000 हैक्टेयर के क्षेत्र में 12000 मैट्रिक टन से अधिक उत्पादन हुआ है।

भारत में ड्रैगन फ्रूट की खेती वर्षवार अनुमानित क्षेत्र

Source: Digital and printed information available in public domain. #data collected by ICAR– NIASM

 

प्रमुख ड्रैगन फ्रूट उत्पादक राज्य (अनुमानित क्षेत्र और उत्पादन

स्रोत- ICAR

गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र भारत के ड्रैगनपुर उत्पादन में लगभग 70% का योगदान है। इन राज्यों में ड्रैगन फूड के उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है जिसका कारण गुजरात, उत्तरी कर्नाटक और पश्चिमी महाराष्ट्र में कच्छ के पानी की कमी वाले प्रमुख क्षेत्र है इसलिए इनका बहुत बड़ा योगदान है।

 भारत के प्रमुख ड्रैगन फ्रूट उत्पादक राज्य –

वर्तमान में भारत में ड्रैगन फ्रूट का उत्पादन बहुत ही कम है जबकि इसकी मांग काफी अधिक है भविष्य में तो इसकी मांग मुख्य रूप से जागरूकता, स्वाद, पोषण और औषधीय गुणों के कारण बढ़ने की संभावना है। ड्रैगन फ्रूट का बाजार मूल्य ₹150 से लेकर ₹350 प्रति किलोग्राम तक रहता है, यहां तक की शहरों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं की बड़ी संख्या वियतनाम और थाईलैंड से आयातित ड्रैगन फूड के लिए ₹500 से ₹600 प्रति किलोग्राम तक भुगतान करते हैं।

अन्य फलों और सब्जियों की तरह ड्रैगन फ्रूट भी अत्यधिक खराब होने वाला फल है और यह 6 से 8 दिनों तक ही इसकी shelf life है। भविष्य में अत्यधिक उत्पादन तथा बाजार में उचित मूल्य ना मिलने पर इन फलों से विनिर्मित वस्तुओं का उत्पादन भी किया जा सकता है, यह फल पल्प से युक्त होता है जिससे जूस, वाइन, जैम आदि उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं।

(3) उत्तराखंड में ड्रैगन फ्रूट की स्थिति।

हालांकि लगातार बढ़ती आबादी को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने की चुनौती सबसे कठिन कार्य है बल्कि असंभव नहीं है भारत में ड्रैगन फ्रूट का उत्पादन तो बहुत कम है तथा उससे ज्यादा तो हम दूसरे देशों से आयात करते हैं।

उत्तराखंड में बड़ी तेजी से गांव खाली होने लगे हैं जिसके अनेक कारण है जैसे आमदनी का पर्याप्त साधन ना होना, कृषि फसलों का उचित मूल्य ना मिलना, सिंचाई के पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं है, और भी अनेक समस्याएं जैसे कि सुखा जैसी समस्याओं के कारण आज हमारे गांव खाली होते जा रहे हैं।

इन सभी चुनौतियों को मध्य नजर रखते हुए ऐसे उचित क्षेत्र में ड्रैगन फ्रूट एक ऐसी संभावित फसल हो सकती है जहां पर सिंचाई की पर्याप्त सुविधा ना हो, जहां पर खाली भूमि हो तथा मिट्टी की गुणवत्ता में कमी हो, वहां पर ड्रैगन फ्रूट की खेती एक लाभप्रत तरीके से की जा सकती है।

ड्रैगन फ्रूट जलजमाव को छोड़कर अक्सर खराब भूमि का सामना करता है इसलिए उत्तराखंड के लिए बहुत सारे अवसर प्रदान करता है। ड्रैगन फ्रूट तेज धूप से फल जलने की समस्या सामने आती है, इस दृष्टि से भी उत्तराखंड में इसकी खेती का एक विकल्प है।

हालांकि इसके लिए कार्बनिक पदार्थ से भरपूर दोमट मिट्टी इसकी व्यवसाय खेती के लिए अच्छी मानी जाती है। यह उथली जड़ वाली फसल है ज्यादातर जड़े 30 सेमी तक ही सीमित रहती है इसलिए मिट्टी की ज्यादा गहराई, खेती के लिए समस्या ना हो इस विशेषता का लाभ उठाते हुए ड्रैगन फ्रूट की खेती विशेष रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में उथली मिट्टी तक बढ़ाया जा सकता है।

इस फूड के विकास के लिए सामान्य तो मिट्टी का PH मान 5.5 से 6.5 तक उचित है।

यह खेती विशेषकर भूमिहीन कृषक, छोटी जोत वाले किसान, के लिए बहुत ही लाभप्रद हो सकती है इसके लिए मिट्टी की ज्यादा गहराई ना होना इस खेती को छतों पर स्लैप बनाकर भी पर्याप्त मात्रा में उत्पादन किया जा सकता है और एक बगीचे के रूप में विकसित करके तो किया ही जा सकता है। कुल मिलाकर इससे यह संकेत मिलता है कि उत्तराखंड में व्यापक हिस्से में इसकी खेती का विस्तार की काफी संभावनाएं हैं।

(4) ड्रैगन फ्रूट की खेती में बाधाएं

ड्रैगन फ्रूट कैक्टि की तरह तेजी से बढ़ने वाली बारहमासी बेल है जो अत्यधिक गर्मी, पानी का ठहराव तथा अन्य पर्यावरणीय कारणों की वजह से क्षतिग्रस्त होती है। जबकि खराब मिट्टी, सुखा, सामान्य गर्मी, ठंड के प्रति सहनशीलता रखती है।

(5) जल और पोषक तत्व

  • हालांकि इस पौधे के लिए जल की आवश्यकता मिट्टी और जलवायु पर निर्भर करती है परंतु इसके लिए सप्ताह में लगभग एक बार 2 से 4 लीटर पानी पर्याप्त है। बस शर्त यह है कि पानी का ठहराव नहीं होना चाहिए।
  • यदि मिट्टी की गुणवत्ता ज्यादा ही खराब हो तो प्रति पौधे के लिए गाय का गोबर 8 से 10 किलोग्राम और वैसे सामान्यतः प्रति पौधा 3 से 5 किलोग्राम पर्याप्त है।

(6) ड्रैगन फ्रूट में कीट एवं रोग तथा समाधान

ड्रैगन फ्रूट तुलनात्मक रूप से कीटों, रोगों, और विकारों से मुक्त है परंतु ड्रैगन फ्रूट के संरक्षण के उपायों में लापरवाही नहीं होनी चाहिए।

  • उत्तराखंड में ड्रैगन फ्रूट में चीटियां, स्केल कीड़े, मैली बग जैसी कीटों और ईटों की व्यापकता आम है। जिसे कीटनाशकों के प्रयोग से आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।
  • ड्रैगन फूड पकने के दौरान चूहे और पक्षियों द्वारा नुकसान पहुंचाया जाता है जिस के बचाव के लिए पौधे को जाल की जरूरत होती है।
  • अत्यधिक गर्मी (अप्रैल-जून) पड़ने पर फूल व फल गिरने लगते हैं जिस से बचने के लिए छाया जाल का प्रयोग किया जा सकता है।

(7) उत्तराखंड में ड्रैगन फ्रूट को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत पहलू

  • कृषि की विविध परिस्थितिक क्षेत्रों में ड्रैगन फ्रूट को लोकप्रिय बनाने के लिए उत्तराखंड के सभी जिलों में एक नीतिगत ढांचा विकसित करने की आवश्यकता है। क्योंकि इसका आर्थिक और औषधीय लाभ अपने आप में महत्वपूर्ण है।
  • इसके लिए संसाधन और तकनीकी रूप से मजबूत ढांचा बनाया जाए तथा किसानों की आय बढ़ाने के लिए वैज्ञानिकों, उद्यमियों और नीति निर्माताओं के संयुक्त प्रयास की आवश्यकता है।
  • उत्पादन के साथ-साथ food processing unit का भी पर्याप्त मात्रा में विकास किया जाना चाहिए जिसे किसानों को उचित मूल्य तथा उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित होगा।

ड्रैगन फ्रूट के कुछ महत्वपूर्ण मूल्यवर्धित उत्पाद

निष्कर्ष

ऊपर संपूर्ण विवेचना के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि ड्रैगन फ्रूट विभिन्न भौगोलिक स्थिति का मूल्यांकन करने के बाद उच्च स्तर पर उत्पादन करके कृषि अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है। जिसने की उस भूमि को भी जो परंपरागत कृषि से बाहर है उन्हें उपयोग करके किसानों की आय में वृद्धि की जा सकती है। ऐसी भूमि जिनकी पहले से गुणवत्ता निम्न है वहां पर तथा बंजर भूमि को कृषि के लिए उपयोग किया जा सकता है यह संभव है ड्रैगन फ्रूट की खेती में ही। उपभोक्ता की जागरूकता और ड्रैगन फ्रूट के अपने आप में औषधीय गुण बाजार में एक अपने आप में मांग वृद्धि का कारण है जो कहीं ना कहीं किसानों को उत्पादन के लिए प्रेरित करेगा इस और अब अहम कदम उठाने की जरूरत है

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